एक अभिजात् यवर्ग के लिए, एक अभिजात भावधारा के, एक अभिजात भाषा में लिखे गये नाटक ही उस समय हिन् दी रंगमंच की कुल संपदा थे ।
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भारतीय लोकतंत्र के हिलते रहने और चरमराने के जितने कारण हों, उनमें एक कारण भाषा भी है, क्योंकि हमने लोक भाषा और जन भाषा की उपेक्षा क र उस अभिजात भाषा को महत्व दे रहे हैं, जिसका व्यवहार करने वालों की संख्या अधिक नहीं है.